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एलपीजी सुधार

Published On:

भारत में 1991 में शुरू किए गए एलपीजी सुधार तीन मुख्य स्तंभों उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण पर आधारित हैं।

 

•उदारीकरण इसमें मितव्ययिता पर सरकारी नियंत्रण को कम करना, निजी उद्यम पर प्रतिबंधों को कम करना और मुक्त-मांग सिद्धांतों को बढ़ावा देना शामिल है।

 

•निजीकरण इसमें राज्य के स्वामित्व वाले उद्यमों की शक्ति, संचालन और नियंत्रण को निजी क्षेत्र को हस्तांतरित करना शामिल है।

 

•वैश्वीकरण इसका उद्देश्य विदेशी व्यापार और निवेश को बढ़ावा देकर भारतीय मितव्ययिता को वैश्विक मांग के साथ एकीकृत करना है।

 

मौद्रिक नीति समिति

 

•मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) देश की मौद्रिक नीति निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसमें निम्नलिखित तीन महत्वपूर्ण बिंदु हैं।

 

•संरचना एमपीसी में छह सदस्य होते हैं, जिनमें से तीन भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) से और तीन बाहरी सदस्य भारत सरकार द्वारा नियुक्त किए जाते हैं।

 

• एमपीसी का प्राथमिक कार्य लाभदायक वृद्धि के आदर्श को ध्यान में रखते हुए मूल्य स्थिरता बनाए रखना है। यह रेपो दर निर्धारित करने के लिए जिम्मेदार है, जो मितव्ययिता में ब्याज दरों को प्रभावित करती है।

 

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी)

 

•सीएजी भारत में एक स्थानीय प्राधिकरण है जिसे संघ और राज्य सरकारों के अलावा अन्य रंगीन सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के खातों की लेखा परीक्षा करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है।

 

•सीएजी यह सुनिश्चित करता है कि सार्वजनिक वित्त का कुशलतापूर्वक और प्रभावी ढंग से उपयोग किया जाए। स्वतंत्रता सीएजी अपने लेखा परीक्षा में निष्पक्षता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए सरकार से स्वतंत्र रूप से काम करता है।

 

•सार्वजनिक वित्त में जवाबदेही और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए यह स्वतंत्रता महत्वपूर्ण है। रिपोर्ट और सिफारिशें सीएजी भारत के राष्ट्रपति को निरीक्षण रिपोर्ट प्रस्तुत करता है, जो उन्हें संसद के समक्ष भी रखते हैं।