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भारत का 23वाँ विधि आयोग (Law Commission)

Published On:

 

संदर्भ

 

भारतीय विधि आयोग भारतीय विधि व्यवस्था में बदलावों की समीक्षा करने और उसमें बदलाव की सिफारिश करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, ताकि बदलती सामाजिक आवश्यकताओं के लिए इसकी प्रासंगिकता सुनिश्चित की जा सके। आयोग की सिफारिशों ने देश में कानूनी सुधारों को महत्वपूर्ण रूप से आकार दिया है।

 

चर्चा में क्यों?

 

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भारत के 23वें विधि आयोग के गठन को मंजूरी दे दी है, जो 1 सितंबर, 2024 से 31 अगस्त, 2027 तक कार्यरत रहेगा। यह कदम ऐसे समय उठाया गया है, जब 22वें विधि आयोग का कार्यकाल समाप्त हो गया है।

 

पृष्ठभूमि

 

22वें विधि आयोग को अपने अध्यक्ष न्यायमूर्ति रितु राज अवस्थी के इस्तीफे के कारण महत्वपूर्ण कानूनी मामलों को संबोधित करने में काफी देरी का सामना करना पड़ा है। परिणामस्वरूप, समान नागरिक संहिता और एक साथ चुनाव जैसे मुद्दों पर महत्वपूर्ण चर्चाएँ अनसुलझी रह गईं।

 

आयोग की संरचना

 

23वें विधि आयोग में निम्नलिखित शामिल होंगे:

 

 

 

पिछले आयोग की चुनौतियाँ

 

22वें विधि आयोग का कार्य अध्यक्ष की कमी के कारण बाधित हुआ था, जिसके कारण समान नागरिक संहिता और देश भर में एक साथ चुनाव कराने जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर विचार करने में देरी हुई थी।

 

23वें आयोग के मुख्य उद्देश्य

 

23वें विधि आयोग के कई प्राथमिक लक्ष्य हैं, जिनमें शामिल हैं :

 

 

अतिरिक्त प्रावधान

 

आयोग सिफारिशें करने से पहले हितधारकों से परामर्श करेगा, जिन्हें हिन्दी और अंग्रेजी दोनों में प्रकाशित किया जाएगा। यह कानूनी शोध और शिक्षा को बढ़ाने के लिए शैक्षणिक संस्थानों के साथ भी काम करेगा।

 

निष्कर्ष

 

23वें विधि आयोग का गठन भारत में कानूनी सुधार के काम को जारी रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। नए आयोग से यह अपेक्षा की जाती है कि वह पिछले आयोग की देरी को दूर करेगा और प्रमुख कानूनी मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करेगा।

 

आगे की राह

 

23वें विधि आयोग को समान नागरिक संहिता और न्यायिक दक्षता जैसे लंबित मुद्दों को प्राथमिकता देनी चाहिए। शैक्षणिक संस्थानों के साथ सहयोग और हितधारकों के साथ परामर्श इसकी सिफारिशों की सफलता सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण होगा।