असम के मोइदम को मिली यूनेस्को विरासत स्थल में जगह : बना भारत का 43वाँ स्थान
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ऐतिहासिक समावेश
26 जुलाई, 2024 को यूनेस्को ने पूर्वी असम में मोइदम को विश्व सांस्कृतिक विरासत स्थल के रूप में मान्यता दी है। मोइदम, अहोम राजवंश की 700 साल पुरानी दफन प्रणाली है, जिसे उनके सांस्कृतिक महत्व और ऐतिहासिक महत्व के लिए स्वीकार किया गया है।
सांस्कृतिक महत्व
मोइदम, पटकाई पर्वतमाला के तल पर स्थित ईंट, पत्थर या मिट्टी से निर्मित दफन तिजोरी हैं। इनमें ताई - अहोम शाही परिवार के अवशेष हैं, जिनमें से लगभग नब्बे मोइदम इस स्थल पर मौजूद हैं।
यूनेस्को ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि ताई - अहोम लोगों ने 600 वर्षों में इन मोइदम का निर्माण किया था, जिससे पहाड़ियों, जंगलों और पानी के प्राकृतिक परिदृश्य को पवित्र भूगोल बनाने में मदद मिली थी।
दफन संरचनाओं के साथ प्राकृतिक तत्वों का यह सावधानीपूर्वक एकीकरण अहोम राजवंश के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मूल्यों को दर्शाता है।
क्रम संख्या |
विरासत स्थल |
शामिल किए जाने का वर्ष |
राज्य |
श्रेणी |
1 |
अजंता गुफाएँ |
1983 |
महाराष्ट्र |
सांस्कृतिक |
2 |
एलोरा गुफाएँ |
1983 |
महाराष्ट्र |
सांस्कृतिक |
3 |
आगरा किला |
1983 |
उत्तर प्रदेश |
सांस्कृतिक |
4 |
ताज महल |
1983 |
उत्तर प्रदेश |
सांस्कृतिक |
5 |
सूर्य मन्दिर |
1984 |
उड़ीसा |
सांस्कृतिक |
6 |
महाबलीपुरम स्मारक |
1984 |
तमिलनाडु |
सांस्कृतिक |
7 |
काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान |
1985 |
असम |
प्राकृतिक |
8 |
केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान
|
1985 |
राजस्थान |
प्राकृतिक |
9 |
मानस वन्यजीव अभयारण्य |
1985 |
असम |
प्राकृतिक |
10 |
गोवा के चर्च और कॉन्वेंट
|
1986 |
गोवा |
सांस्कृतिक |
11 |
खजुराहो के स्मारक |
1986 |
मध्यप्रदेश |
सांस्कृतिक |
12 |
हम्पी के स्मारक |
1986 |
कर्नाटक |
सांस्कृतिक |
13 |
फतेहपुर सीकरी |
1986 |
उत्तर प्रदेश |
सांस्कृतिक |
14 |
एलीफेंटा गुफाएँ
|
1987
|
महाराष्ट्र |
सांस्कृतिक |
15 |
महान जीवित
चोल मन्दिर, इसमें (क) तंजावुर में बृहदेश्वर मन्दिर, (ख) गंगाईकोंडाचोलीस्वरम में बृहदेश्वर मन्दिर और (ग) दारासुरम में ऐरावतेश्वर मन्दिर शामिल हैं। |
1987 |
तमिलनाडु |
सांस्कृतिक |
16 |
पट्टाडकल स्मारक |
1987
|
कर्नाटक |
सांस्कृतिक |
17 |
सुंदरबन राष्ट्रीय उद्यान |
1987 |
पश्चिम बंगाल |
प्राकृतिक |
18 |
नंदा देवी और फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान |
1988 |
उत्तराखण्ड |
प्राकृतिक |
19 |
बुद्ध के स्मारक |
1989 |
साँची, मध्यप्रदेश |
सांस्कृतिक |
20 |
हुमायूं का मकबरा |
1993 |
दिल्ली |
सांस्कृतिक |
21 |
कुतुब मीनार और इसके स्मारक |
1993 |
दिल्ली |
सांस्कृतिक |
22 |
पहाड़ रेलवे दार्जिलिंग, कालका - शिमला और नीलगिरि |
1999 |
पश्चिम बंगाल, हिमाचल प्रदेश और तमिलनाडु |
सांस्कृतिक |
23 |
महाबोधि मन्दिर |
2002 |
बोधगया, बिहार |
सांस्कृतिक |
24 |
भीमबेटका रॉक शेल्टर |
2003 |
मध्य प्रदेश |
सांस्कृतिक |
25 |
छत्रपति शिवाजी टर्मिनस |
2004 |
महाराष्ट्र |
सांस्कृतिक |
26 |
चंपानेर पावागढ़ पुरातत्व पार्क |
2004 |
गुजरात |
सांस्कृतिक |
27 |
लाल किला |
2007 |
दिल्ली |
सांस्कृतिक |
28 |
जंतर मंतर |
2010 |
दिल्ली |
सांस्कृतिक |
29 |
पश्चिमी घाट |
2012 |
कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, महाराष्ट्र |
प्राकृतिक |
30 |
राजस्थान के पहाड़ी किले - चित्तौड़गढ़, कुंभलगढ़ सवाई माधोपुर झालावाड़, जयपुर और जैसलमेर |
2013 |
राजस्थान |
सांस्कृतिक |
31 |
रानी की वाव |
2014 |
पाटन, गुजरात |
सांस्कृतिक |
32 |
ग्रेट हिमालयन राष्ट्रीय उद्यान
|
2014
|
हिमाचल प्रदेश |
प्राकृतिक |
33 |
नालंदा |
2016
|
बिहार |
सांस्कृतिक |
34 |
खांगचेंदज़ोंगा राष्ट्रीय उद्यान
|
2016 |
सिक्किम |
मिश्रित |
35 |
वास्तुशिल्प कार्य ली कोर्बुसिएर का (कैपिटल कॉम्प्लेक्स) |
2016 |
चण्डीगढ़ |
सांस्कृतिक |
36 |
ऐतिहासिक शहर अहमदाबाद |
2017 |
गुजरात |
सांस्कृतिक |
37 |
विक्टोरियन गोथिक और आर्ट डेको के समूह, मुम्बई |
2018 |
महाराष्ट्र |
सांस्कृतिक |
38 |
गुलाबी नगर |
2019 |
जयपुर, राजस्थान |
सांस्कृतिक |
39 |
काकतीय रुद्रेश्वर (रामप्पा) मन्दिर |
2021 |
तेलंगाना |
सांस्कृतिक |
40 |
धोलावीरा |
2021 |
गुजरात |
सांस्कृतिक |
41 |
शान्तिनिकेतन |
2023 |
पश्चिम बंगाल |
सांस्कृतिक |
42 |
बेलूर, हलेबिड और सोमनाथपुरा के होयसल मन्दिर |
2023 |
कर्नाटक |
सांस्कृतिक |
43 |
मोइदम - अहोम राजवंश की टीला - दफन प्रणाली |
2024 |
असम |
सांस्कृतिक |
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मंत्रिस्तरीय स्वीकृति
संस्कृति मंत्री ‘गजेंद्र सिंह शेखावत’ ने मोइदम को विश्व धरोहर सूची में शामिल किए जाने को एक महत्वपूर्ण अवसर बताया है। उन्होंने मोइदम के वैश्विक महत्व पर ज़ोर देते हुए इस स्थल के सांस्कृतिक मूल्य को मान्यता देने के लिए यूनेस्को और विश्व धरोहर समिति के प्रति आभार व्यक्त किया है।
ऐतिहासिक संदर्भ
मोइदम असम और पूर्वोत्तर से यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल होने वाला तीसरा स्थल है, इससे पहले ‘काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान’ और ‘मानस वन्यजीव अभयारण्य’ को 1985 में प्राकृतिक श्रेणी में शामिल किया गया था।
दाह संस्कार की आम हिन्दू प्रथा के विपरीत, ताई लोगों से उत्पन्न अहोम लोग दफनाने की प्रथा का पालन करते थे। मोइदम की ऊँचाई आम तौर पर उसमें दफनाए गए व्यक्ति की स्थिति को दर्शाती है, हालाँकि अधिकांश मोइदम अज्ञात हैं, सिवाय ‘गधाधर सिंह’ और ‘रुद्र सिंह के, जो कई वर्षों तक शासन करने वाली पिता - पुत्र की जोड़ी थी।
मिस्र की प्रथाओं के साथ समानताएँ
मोइदम के अन्दर मृतक राजा को ‘मृत्यु के बाद’ की वस्तुओं के साथ दफनाया जाता था, जिसमें नौकर, घोड़े, पशुधन और यहाँ तक कि उनकी पत्नियाँ भी शामिल थीं।
यह प्रथा प्राचीन मिस्र के दफन रीति - रिवाजों की याद दिलाती है, जिसके कारण चराईदेव मोइदम को ‘असम के पिरामिड’ उपनाम मिला है। यूनेस्को द्वारा मान्यता मोइदम की सांस्कृतिक समृद्धि और ऐतिहासिक गहराई को दर्शाती है, जो भारत की विविध विरासत को और उजागर करती है।